alif laam meem - Dars-e-Quran

Dars-e-Quran

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Tuesday, April 23, 2019

alif laam meem


【●बिस्मिल्लाहिर ● रहमानिर ● रहीम●】
यह क़ुरआन शरीफ़ की दूसरी सूरत है. मदीने में उतरी,●

[
आयतें: 286 रूकू 40.]

सूरतुल बक़रह पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
अलिफ़ लाम मीम(2)
वह बुलन्द रूत्बा किताब कोई शक की जगह नहीं(3)
इसमें हिदायत है डर वालों को,(4)
वो जो बेदेखे ईमान लाएं,(5)
और नमाज़ क़ायम रखें,(6)
और हमारी दी हुई रोज़ी में से हमारी राह में उठाएं(7)और वो कि ईमान लाएं उस पर जो मेहबूब तुम्हारी तरफ़ उतरा और जो तुम से पहले उतरा,(8)
और आख़िरत पर यक़ीन रख़े (9)
वही लोग अपने रब की तरफ़ से हिदायत पर हैं और वही मुराद को पहुंचने वाले
बेशक वो जिन की क़िसमत में कुफ्र है(10)
उन्हें बराबर है चाहे तुम उन्हें डराओ या डराओ वो ईमान लाने के नहीं
अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर कर दी और आखों पर घटा टोप है(11)
और उनके लिये बड़ा अज़ाब

तफ़सीर : सूरए बक़रह - पहला रूकू

1.
सूरए बक़रह: यह सूरत मदीना में उतरी. हज़रत इब्ने अब्बास (अल्लाह तआला उनसे राज़ी रहे) ने फ़रमाया मदीनए तैय्यिबह में सबसे पहले यही सूरत उतरी, सिवाय आयतवत्तक़ू यौमन तुर जऊनके कि नबीये करीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के आख़िरी हज में मक्कए मुकर्रमा में उतरी. (ख़ाज़िन) इस सूरत में 286 आयतें, चालीस रूकू, : हज़ार एक सौ अक्कीस कलिमे (शब्द) 25500 अक्षर यानी हुरूफ़ हैं.(ख़ाज़िन)

पहले क़ुरआन शरीफ़ में सूरतों के नाम नहीं लिखे जाते थे. यही तरीक़ा हज्जाज बिन यूसुफे़ सक़फ़ी ने निकाला. इब्ने अरबी का कहना है कि सूरए बक़रह में एक हज़ार अम्र यानी आदेश, एक हज़ार नही यानी प्रतिबन्ध, एक हज़ार हुक्म और एक हज़ार ख़बरें हैं. इसे अपनाने में बरक़त और छोड़ देने में मेहरूमी है. बुराई वाले जादूगर इसकी तासीर बर्दाश्त करने की ताक़त नहीं रखते. जिस घर में ये सूरत पढ़ी जाए, तीन दिन तक सरकश शैतान उस में दाख़िल नहीं हो सकता. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि शैतान उस घर से भागता है जिस में यह सूरत पढ़ी जाय. बेहक़ी और सईद बिन मन्सूर ने हज़रत मुग़ीरा से रिवायत की कि जो कोई सोते वक्त़ सूरए बक़रह की दस आयतें पढ़ेगा, वह क़ुरआन शरीफ़ को नहीं भूलेगा. वो आयतें ये है: चार आयतें शुरू की और आयतल कुर्सी और दो इसके बाद की और तीन सूरत के आख़िर की.

तिबरानी और बेहक़ी ने हज़रत इब्ने उमर (अल्लाह उन से राज़ी रहे) से रिवायत की कि हुज़ूर (अल्लाह के दूरूद और सलाम हों उनपर) ने फ़रमाया _मैयत को दफ्न करके क़ब्र के सिरहाने सूरए बक़रह की शुरू की आयतें और पांव की तरफ़ आख़िर की आयतें पढ़ो.
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सूरतुल बक़रह

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